अमेरिकी कंपनी मैक्सार टेक्नोलॉजीज को पहलगाम की सैटेलाइट तस्वीरों के ऑर्डर क्यों मिले आतंकी हमले से पहले? पाकिस्तानी कंपनी बिजनेस सिस्टम्स इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड (BSI) लिंक पर उठे गंभीर सवाल
नई दिल्ली: पाकिस्तान की भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी कंपनी बिजनेस सिस्टम्स इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड (BSI) को लेकर अमेरिका की प्रमुख सुरक्षा एजेंसी होमलैंड सिक्योरिटी इन्वेस्टिगेशन (HSI) ने गंभीर खुलासा किया है। रिपोर्ट के अनुसार, BSI ने अमेरिकी सैटेलाइट कंपनी मैक्सार टेक्नोलॉजीज से प्राप्त उच्च गुणवत्ता वाली उपग्रह तस्वीरें अवैध रूप से पाकिस्तान सरकार को उपलब्ध कराईं। इन तस्वीरों का इस्तेमाल भारत के संवेदनशील क्षेत्रों, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर के पहलगाम जैसे इलाकों की निगरानी के लिए किया गया, जहां हाल ही में एक बड़ा आतंकी हमला हुआ। यह मामला अब भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक संभावित खतरे के रूप में देखा जा रहा है।
कश्मीर हमला और पहलगाम की सैटेलाइट इमेज की कहानी
फरवरी 2025 में, अमेरिकी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी कंपनी Maxar Technologies को पहलगाम और उसके आसपास के इलाकों की हाई-रेजोल्यूशन satellite images के 12 ऑर्डर मिले। ये संख्या सामान्य से दोगुनी थी। ये ऑर्डर ऐसे समय पर आए जब कश्मीर में हालात संवेदनशील थे। और महज दो महीने बाद यही इलाका एक बड़े आतंकी हमले का शिकार बना, जिसमें 26 निर्दोष लोगों की जान गई।
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लेकिन इस घटना का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह था कि इन ऑर्डर्स की शुरुआत जून 2024 में हुई थी, और इसी समय Maxar ने एक पाकिस्तानी भू-स्थानिक कंपनी Business Systems International Pvt Ltd (BSI) को अपना साझेदार घोषित किया था। यह कंपनी अमेरिका में फेडरल क्राइम के तहत जांच में थी।
source: ThePrint
2020 में ही अमेरिकी एजेंसियों को BSI की सच्चाई पता थी?
BSI और उसके मालिक ओबैदुल्ला सैयद के खिलाफ अमेरिका की Homeland Security Investigations (HSI) ने 2020 में ही आपराधिक शिकायत दर्ज की थी। इस शिकायत में खुलासा किया गया था कि BSI ने कोलोराडो स्थित सैटेलाइट इमेज कंपनी से तस्वीरें खरीदीं और उन्हें गैरकानूनी तरीके से पाकिस्तान सरकार को बेच दिया।
अमेरिका के अनुसार, ये इमेज पाकिस्तान की उन एजेंसियों को भेजी गईं जो परमाणु हथियारों के निर्माण और मिसाइल डेवलपमेंट से जुड़ी थीं। HSI एजेंट जेनिफर ग्रीन द्वारा दायर शिकायत में कहा गया कि BSI के ईमेल, बैंक ट्रांजैक्शन्स और सोशल मीडिया कनेक्शनों के जरिए यह बात साबित हुई है।
सैयद का पाकिस्तान के परमाणु हथियार प्रोग्राम से गहरा रिश्ता
शिकायत के अनुसार, ओबैदुल्ला सैयद ने Pakistan Atomic Energy Commission (PAEC) और National Development Complex (NDC) जैसे संस्थानों के अधिकारियों के साथ वर्षों तक संपर्क बनाए रखा। 2006 से 2020 के बीच उन्होंने पाकिस्तान के साइंस डिविजन के प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी को कई ईमेल भेजे। एक BSI कर्मचारी के ईमेल अकाउंट से NDC द्वारा भेजा गया चेक भी एजेंसियों ने जब्त किया।
इस चेक पर NDC के एक अधिकारी के हस्ताक्षर थे जो “डायरेक्टर जनरल (C&S), नेशनल डेवलपमेंट कॉम्प्लेक्स,इस्लामाबाद” के तौर पर हस्ताक्षर कर रहे थे। ये सबूत बताते हैं कि BSI पाकिस्तान के डिफेंस और न्यूक्लियर एजेंसियों के साथ लगातार जुड़ा रहा और उसे गुप्त सैटेलाइट डाटा की आपूर्ति करता रहा।
Maxar ने BSI को 2023 में फिर बना लिया अपना पार्टनर
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब BSI और उसके मालिक पर अमेरिका में केस चल रहा था, तो 2023 में Maxar Technologies ने उसे साझेदार क्यों बनाया? और क्या इस साझेदारी से पहले कंपनी ने कोई बैकग्राउंड वेरिफिकेशन किया?
Maxar की ओर से इस पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। फ़िलहाल कथित तौर पर पाकिस्तानी कंपनी BSI को अमेरिकी सैटेलाइट कंपनी की वेबसाइट से साझेदार के रूप में हटा दिया गया है, लेकिन अभी तक यह साफ़ नहीं किया गया है कि पहलगाम की तस्वीरों के लिए ऑर्डर किसने दिए।
राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए अलार्मिंग संकेत
भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने इस पूरे घटनाक्रम को गंभीर सुरक्षा खतरे के तौर पर देखा है। खुफिया सूत्रों का मानना है कि अगर इन तस्वीरों का उपयोग हमले की प्लानिंग में हुआ, तो यह एक अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा हो सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि एक हाई-रेजोल्यूशन सैटेलाइट इमेज की कीमत करीब 3 लाख रुपये होती है। और इतने सारे ऑर्डर सिर्फ पहलगाम के लिए देना, वो भी हमले से ठीक पहले, संयोग नहीं हो सकता।
आगे क्या? जांच की मांग तेज
अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारत सरकार इस मुद्दे को डिप्लोमेटिक लेवल पर अमेरिका के साथ उठाएगी? क्या पाकिस्तान के खिलाफ नए सबूतों के आधार पर अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई संभव है?
इस समय जब भारत आतंकवाद के खिलाफ दुनिया को एकजुट करने की कोशिश कर रहा है, इस तरह की गतिविधियां सीधे-सीधे देश की सुरक्षा पर हमला हैं। अगर इन सैटेलाइट तस्वीरों का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों में हुआ, तो यह न सिर्फ एक साइबर सिक्योरिटी ब्रेकडाउन है बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय आपराधिक नेटवर्क का हिस्सा भी हो सकता है।
यह पूरी घटना हमें याद दिलाती है कि आतंक अब सिर्फ बंदूक से नहीं आता, वो सैटेलाइट, डेटा और तकनीक के जरिए भी आता है। और जब एक ऐसी कंपनी को, जो अपराधों में लिप्त है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग दिया जाता है, तो उसकी कीमत आम नागरिकों की जान से चुकानी पड़ती है।
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